Friday 6 February 2015

विविधता, असमानता तथा वंचना : अवधारणा तथा शैक्षिक संदर्भ




विविधता, असमानता तथा वंचना : अवधारणा तथा शैक्षिक संदर्भ 

(डॉ० प्रवीण कुमार तिवारी, सहायक प्रोफेसर, शिक्षाशास्त्र विद्याशाखा, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय)


            हमारी सम्पूर्ण प्रकृति तमाम विविधताओं से भरी पड़ी है | भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवों, पेड़-पौधों, नदी नालों, स्थलाकृतियों आदि के रूप में यह विविधता ही प्रकृति का सौंदर्य है | हमारा समाज भी भिन्न-भिन्न रंग, रूप, क्षमता, प्रकृति, भाषा, वेशभूषा, खान-पान, आचार-व्यवहार, आस्था-मान्यता, धर्म-संप्रदाय आदि से संबंधित विविध व्यक्तियों व समुदायों से समृद्ध है | यही विविधता हमारे समाज की खूबसूरती है | हमारे समाज में विद्यमान विभिन्न समुदाय व लोगों की क्षमताएँ व खासियत अलग-अलग हैं | एक लोकतांत्रिक सत्ता व व्यवस्था की यह भूमिका होनी चाहिए कि इन विविध जनों व समुदायों के विकसने व एक बेहतर जीवन जीने की व्यवस्थाओं को बिना भेद-भाव के सुलभ कराए | परन्तु हमारे समाज ने मानव सभ्यता के विकास क्रम में सत्ता व व्यवस्था के भिन्न भिन्न रूपों को देखा व उन वर्चस्ववादी ताकतों के अनुरूप जीने को बाध्य हुआ | सहस्त्राब्दियों तक सुविधाविहीन, धन, प्रतिष्ठा व ताकत से महरूम एक बड़े वर्ग को सुविधायुक्त, बेहतर व सम्मानित जीवन जीने की व्यवस्थाओं से दूर रखा गया | सुविधाओं से वंचित किए जाने का आधार बना जन्म का कुल, लिंग, निवास स्थान, भाषा, आस्था व मान्यताएँ, धर्म व सम्प्रदाय आदि | ये आधार जो मूल रूप में विविधताएँ हैं के कारण किसी वर्ग व व्यक्ति विशेष को विकसने के लिए जरुरी मौलिक सुविधाओं से वंचित किए जाने से ही असमानता जन्म लेती है | इस प्रकार असमानता सत्ता व वर्चस्ववादी ताकतों के प्रत्यक्ष या परोक्ष व्यवहार द्वारा विकास के साधनों के असमान वितरण से उत्पन्न हुई वह स्थिति है जिसमें एक ही समाज में भिन्न-भिन्न जन व समुदाय विकास की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में रहने को बाध्य होते हैं | दूसरे ढंग से देखा जाय तो ‘असमानता’ सत्ता व वर्चस्ववादी ताकतों का व्यवहार भी है और समाज की स्थिति भी | विकास हेतु आवश्यक सुविधाओं से वंचित होने तथा इस असमानता के व्यवहार के कारण व्यक्ति व समुदाय के अंदर वंचन का भाव जन्म लेता है और वह स्थिति जिसमें वंचित व्यक्ति जीता है ‘वंचना’ के रूप में जाना जाता है | सूक्ष्मता से देखा जाए तो वंचन, व्यक्ति तथा समुदाय दोनों के स्तर पर दो प्रकार से हो सकता है । व्यक्ति तथा समूह के अन्दर वंचन का भाव इस कारण से भी हो सकता है कि वह जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए संघर्ष कर रहा हो और इस संघर्ष के बावजूद भी उनसे वंचित हो; या शारीरिक तथा मानसिक रूप से इतना अक्षम हो कि सामान्य सुविधाओं के उपलब्ध रहने के बावजूद भी उसका उपयोग न कर पाए । इस प्रकार के वंचन को वास्तविक वंचन (Absolute Deprivation) कहा जा सकता है। वंचन का दूसरा भाव इस कारण से भी उत्पन्न हो सकता है कि व्यक्ति या समूह किसी दूसरे व्यक्ति या समूह की अपेक्षा भौतिक संसाधनों, सामाजिक प्रतिष्ठा तथा अन्य किसी भी कारण से अपने आपको वंचित महसूस कर रहा हो । वंचन के इस भाव को सापेक्षिक वंचन (Relative Deprivation) कहा जाता है । । इस प्रकार वंचन को मोटे तौर पर चार प्रकार से देखा जा सकता है - वास्तविक वैयक्तिक वंचन (Absolute Individual Deprivation), सापेक्षिक वैयक्तिक वंचन (Relative Individual Deprivation), वास्तविक सामुदायिक वंचन (Absolute Fraternal Deprivation), सापेक्षिक सामुदायिक वंचन (Relative Fraternal Deprivation) |
अब आइए विविधता, असमानता तथा वंचना की शैक्षिक सन्दर्भों में पड़ताल करें | हमारे देश में विविधताओं की भरमार है | यह विविधता प्रकृति के साथ-साथ निवास कर रहे लोगों में भी ज्यादा है | कई मान्यताओं, विश्वासों, लोक-परम्पराओं, पद्धतियों, रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा तथा अन्य कई सामाजिक-सांस्कृतिक परम्पराओं वाले लोग इस देश में निवास करते हैं | शिक्षा के संस्थानों में मौजूद लोग भी इसी विविधता को धारण किए होते हैं | अतः हमें शिक्षायी वातावरण में अवश्य इन विविधताओं का सम्मान करना चाहिए | क्योंकि विविधता इस समाज की पूँजी है, इसका सौंदर्य है जिसको सँजोना शिक्षा का दायित्व होना चाहिए | आप अपने विद्यालय में निरंतर इस प्रकार की विविधताओं का अनुभव करते होंगें | कल्पना कीजिए कि दो भिन्न आर्थिक स्थिति, वेश-भूषा, खान-पान या लोक-परम्परा वाले विद्यार्थियों में कोई शिक्षक भेद-भाव करना व असमान व्यवहार करना शुरू कर दे तो किस प्रकार की स्थिति उत्पन्न होगी ? क्या यह स्थिति किसी विद्यार्थी के विकास व उसके आत्म-संप्रत्यय के निर्माण को प्रभावित नहीं करेगी ? आपका उत्तर निश्चित ही हाँ होगा | आप संभवतः यह उत्तर देंगें कि असमान व भेद-भाव पूर्ण व्यवहार से विद्यार्थियों के अंदर वंचना का भाव आएगा, तथा यह भाव अवश्य ही उनके विकास को प्रभावित करेगा | संभवतः उन विद्यार्थियों में तंत्र के खिलाफ़ विद्वेष पैदा होगा जो आगे चलकर उनके व्यक्तित्व की प्रकृति को निर्धारित करेगा | अतः एक शिक्षक का दायित्व बनता है कि वह एक ऐसे शिक्षायी माहौल का निर्माण करे जिसमें विविधताओं का सम्मान हो, किसी भी प्रकार की असमानता का व्यवहार न हो तथा एक समावेशी वातावरण में बच्चों को विकसने का अवसर मिले | 

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  2. शिक्षा में विविधता की समस्या को दूर कैसे करें?

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